गुप्त काल को भारत का स्वर्ण काल कहा जाता है।
गुप्त वंश
की स्थापना चन्द्रगुप्त प्रथम ने की थी। आरंभ में
इनका शासन
केवल मगध पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं
ने संपूर्ण उत्तर
भारत को अपने अधीन करके दक्षिण में कांजीवरम के
राजा से
भी अपनी अधीनता स्वीकार कराई।
समुद्रगुप्त का पुत्र 'चन्द्रगुप्त द्वितीय' समस्त गुप्त राजाओं में
सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से संपन्न था।
शकों पर
विजय प्राप्त करके उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण
की। वह 'शकारि' भी
कहलाया। मालवा, काठियावाड़,
गुजरात और उज्जयिनी को अपने साम्राज्य में मिलाकर
उसने
अपने पिता के राज्य का और भी विस्तार किया। चीनी
यात्री फाह्यान उसके समय में 6 वर्षों तक भारत में रहा।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का शासनकाल भारत के
इतिहास का
बड़ा महत्वपूर्ण समय माना जाता है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में गुप्त साम्राज्य
अपनी शक्ति की
चरम सीमा पर पहुंच गया था। दक्षिणी भारत के जिन
राजाओं
को समुद्रगुप्त ने अपने अधीन किया था, वे अब भी अविकल रूप से
चन्द्रगुप्त की अधीनता स्वीकार करते थे।
शक-महाक्षत्रपों और
गांधार-कम्बोज के शक-मुरुण्डों के परास्त हो जाने
से गुप्त
साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में अरब सागर तक और
हिन्दूकुश
के पार वंक्षु नदी तक हो गया था।
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